ऊँची इमारतों की काली मोटी सी दीवारें
आसमान को मेरी नज़र से हटाकर
यूँ खड़ी है सामने मेरे
छाँव में उसके
न जाने अब क्या समय हो रहा है
दिखाई दिए आसमान के कुछ हिस्से
अच्छा ऐसा था आजका रंग तुम्हारा
कितना खूबसूरत है
काश मैं भी ऊपर से देख
काम काम काम काम काम काम काम
काम के लिए पूरे दिन घर से दूर
सुबह जल्दी निकलता
वापस आता रात को
देखो उसका थका सा वह चेहरा
फिर वह क्या करता
घर वापस आते ही चिल्लाता
खाना खाते ही सो जाता
बंद करता अपना मुँह
खोलता तो अपना मोबाइल
क्यों जीना होता है